शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

Tanu thadani तनु थदानी हूँ बूँद बूँद सा बिखरा मैं

ये कौन हमारे आगे पीछे ; ग़म के पत्थर पटक गया ?
शायद अपना ही अंतस था ; कुछ कुछ ऐसा ही खटक गया !


इतने सारे सत्संग चलते ; अजान नमाज़ में व्यस्त सभी ;
फिर भी देखो हर इक चेहरा ; हर इक ख्वाहिश पे चटक गया !


सपनों के चप्पे चप्पे पर ; हम रूप बदल कर चिपके हैं ;
सपनों की बस्ती चकाचौंध ; जो गया वो रस्ता भटक गया !


इक होता है एकांत जो अपनी ; बाहों में भर लेता है ;
है होता एक अकेलापन ; जो फंसा वहीं पे लटक गया!


हूँ बूंद बूंद सा बिखरा मैं ; अपनी ही हर अभिव्यक्ति पर ;
आवाज की सरहद लांघ के जब ; रोया ;ग़ज़लों में अटक गया !
------------------------------ तनु थदानी