गुरुवार, 22 जनवरी 2015

tanu thadani तनु थदानी मुझे तुम नास्तिक कह लो

कहीं  सवाल  के  उत्तर में , पत्थर बाज बनते हैं !
यही तो प्रश्न है कि , क्यूँ हम पत्थर बाज बनते हैं ?

हजारों गज जमीं जो  गांव में थी , छोड़ छाड़ कर,
यहाँ सौ गज के घर में रह, तरक्की बाज बनते हैं !

वो मां ने जान के चालाकियां ,फिर भी दिये कंगन,
मगर  समझे  नहीं  बेटे , यूं  चालबाज  बनते हैं !

गजब थी भीड, फाटक बंद था , थी रेल आने को ,
निकाला खुद को नीचे से , बड़े जांबाज  बनते हैं !

हमारे  पास  मौके  खूब  आते , इंसा  होने  के ,
मगर हम आदतन, खुद से ही ,धोखेबाज बनते हैं !

फरिश्ते  देख  कर  भागे , हमारे हाल धरती के ,
कि  ईश्वर पालने के भी  यहाँ , रिवाज बनते हैं !

हम ही बस श्रेष्ठ हैं , सारी लड़ाई का यही मुद्दा ,
धरम की देह पे नाहक ही, खुजली खाज बनते हैं !

कभी मिलना हो मुझसे तो,धरम को छोड़ के मिलना ,
धरम को  ओढ़ने  वाले  ही , पंगेबाज  बनते  हैं !

मुझे तुम नास्तिक कह लो,मगर ये तो बताओ,क्यूँ,
धरम  से युद्ध  व  जेहाद  के , अल्फाज बनते हैं ??




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