शनिवार, 29 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी हर साल ही बाबा मुझे तुम घर बुलाओ ना

हूँ जी रही मैं ,खुश हूँ ये ,जिस तिस से कहला के !
क्यूँ  कर  दिया  परदेसी ,बाबा ,दुनियां में ला के ?

हम  बेटियों  का  ही  पता ,क्यूँ  कर  बदलता है ?
दुनियां  बदल  जाती  हमारी , पीहर  से  जा  के !

थे  रुठते  जो  घर  में  ,  हर   कोई  मनाता  था ,
ससुराल  में  तो हक़ नहीं , रुठे  भी  दिखला  के !

आयी  जो  बरसों बाद  मैं , तो सब  लिपट रोयें ,
मैं हँस रही थी , अपने  रोते  दिल को बहला के !

बस रो लिया ,मुस्का  लिया ,वो कुछ नहीं बोला ,
बाबुल ने प्यार कर लिया , बालों को सहला  के !

हर साल  ही  बाबा  मुझे  तुम, घर  बुलाओ  ना ,
भर  दूँगी घर बचपन से  मैं , हर साल यूँ आ के !

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी चलो तुम्हें जन्नत दिखलाऊं

जिस दिन ग़ज़लें मेरी तुमको , एक चिकोटी काटेगी !
दुनियां से तब अलग दिखोगे , मौन तुम्हारा छांटेगी !

पहले इंसा बन जाओ,फिर हिन्दू-मुस्लिम बन जाना ,
अच्छी फितरत ही खुशियों से , रूह तुम्हारी पाटेगी !

भले पकाओ विष जीवन भर, याद रखो संतान तेरी ,
तय  है  जो भी  पका  मिलेगा , खायेगी  व  चाटेगी !

झरने - पंक्षी  सुर  को बांटे , हवा बाँटती  जीवन  है ,
जिस दिन हो  जाओगे  इनके , खुशी तुम्हें ये बांटेगी !

चलो  तुम्हें  जन्नत  दिखलाऊं , जो  तेरे ही घर में है ,
जन्नत वो ,जब दुःख आयेगा , तुम्हें हौंसला माँ देगी !

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी मुझे दंगा नहीं देना .

रहो खुश तुमको मैं इस मुल्क का ,राजा बनाता हूँ !
मुझे  दंगा  नहीं  देना , मैं  ये  झोली   फैलाता  हूँ !

यहाँ लायसेंस ले कर मौत का , व्यापार होता है ,
तहत कानून ये  ज़ायज, तभी मैं  तिलमिलाता हूँ !

मेरे घर के निकट, बाहर सड़क पे , दो दो ठेके हैं ,
मगर मैं दूध की खातिर तो , अगले चौक जाता हूँ !

महज़ घर गाँव का  छोड़ा , यहाँ पे ये सजा पायी ,
वहाँ साइकिल चलाता था , यहाँ रिक्शा चलाता हूँ !

शहर की गली सड़को ने , मुझे जबरन बड़ा किया ,
मैं घर में माँ के संग, मासूमियत में , लौट आता हूँ !

मुझे  उल्लु  कभी  ईनाम  क्यों , देंगे भला  बोलो ?
जहां  भी  दिखता अंधेरा , वहीं  दीपक जलाता हूँ !

न मीठी बात है , न लोरियां , न किस्से परियों के ,
कहीं तुम सो न जाओ, इसलिए ग़ज़लें सुनाता हूँ !

सोमवार, 24 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी सियासत siyasat

सियासत अब यहाँ हिंसा को ही ,जुबान देती है !
मुझे हिंदू , तुझे मुस्लिम, यही  पहचान  देती  है !

सियासत ने हमारी शक्ल को ,इक वोट में बदला ,
चुनाव  में  तो हर ज़मीर  तक को , छान देती है !

सियासत होती है कि क्या पढ़े,क्या ना पढ़े बच्चे ,
सियासत  ही  यहाँ  स्कूल  में  , दूकान  देती  है !

कमाने  क्यूँ  निकल जाते  हैं  बच्चे , ये नहीं मुद्दा ,
सियासत बाल -मजदूरी पे बस,  फरमान देती है !

हमारी  किस  तरह  से  काटनी  है , जेब व गर्दन,
सियासत इक तवायफ की तरह,सब जान लेती है !

कवि जब खोलता है पोल, नेता की , सियासत की ,
सियासत इक सियासत की तहत,  सम्मान देती है !

कि जैसे  काटते  कुत्ते को , हड्डी  हम  खिलाते हैं ,
सियासत  एक  पदवी ,  इक दुशाला , दान देती है !

सोमवार, 17 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी कर लिया फतह सुनो जी

हम सलीके आदमी , मिल भी पायेंगे कहाँ ?
डाके भी डालते हैं, कर के पूजा हम यहाँ !

चालाकियां,चालाकियां,चालाकियां,चालाकियां,
कर रहें कदमों से ले , सांस तक यहाँ वहाँ !

है अगर भगवान तो भी,क्या करेगा वो भला ,
लूटते  हैं  देश  को  चल , कौन देखेगा यहाँ ?

एक फ्लैट ,  एक गाड़ी ,  बाप  वृद्धाआश्रम  ,
कर लिया फतह सुनो जी,इस तरह सारा जहाँ !

रविवार, 16 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी मुझे ग़ज़लों की नज़र से ही पहचाना करो.

तुझे बस आईना दिखलाया , इतना खीज नहीं !
दिखेगी  भी  नहीं , गंर, तन पे है , कमीज नहीं !

मुझे  ग़ज़लों  की  नज़र  से ही , पहचाना  करो ,
कि  मैं  शक्ल  से , पहचान  वाली  चीज  नहीं !

किसी की  फिक्र में मिलता हूँ , खुशनसीबी मेरी ,
किसी भी  जिक्र  में रहने  की  ,है  तमीज  नहीं !

वो रोया , आँखें   मेरी , आंसुओं  से  भर  आई  ,
उसी  पे  ग़ज़ल  लिखूं  , इतना  बदतमीज  नहीं !

tanu thadani तनु थदानी चलो इक बार जी के देखते हैं फूल की भाँति


शनिवार, 8 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी बस बात इतनी सी थी

आते  ही  धर्म  थामा , यूं  कमजोर आयें हम!
फिर जातियों को नाम तक में,जोड़ आयें हम!

गानों में भी हिन्दू भजन, मुस्लिम कव्वालियां ,
सुर तक में भी जाति, ओं धर्म ओढ़ आयें हम!

बगिया के फूल थे जीवित,पत्थर तो थे निर्जीव,
उन पत्थरों के खातिर  , फूल तोड़ आयें हम!

ईश्वर  बड़ा  दयालु  तो , हथियार हाथ क्यूँ ?
हर देवता संग शस्त्र तो,किस ओर आयें हम?

बाबू जी  रहें  उम्र  भर  , खिलाफ  पंडो  के ,
पर श्राद्ध में पंडो से , रिश्ता जोड़ आयें हम!

बेहद अजीज दोस्त था पर,था वो मुसलमान,
बस बात इतनी सी थी,दोस्त छोड़ आयें हम! 

बुधवार, 5 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी गद्दी छोड़ो ओ राजा जी

हम लिखते,दुःख की कविताएँ ,उनसे पूछो दुःख के माने !
जिन बच्चों ने, ओढ़ गरीबी , सपने अपने दुःख से साने !

मायूसी  के  बीहड़  वाले , बच्चों  में  मुस्कान  कहाँ  है ?
धूप  ठंड  और भूख के देखो , उलझ गयें सब ताने बाने !

कचरा बीने , ईटें ढ़ोये , बचपन  आखिर  कितना  रोये ?
देश  हमारा  चला  रहें   हैं , अंधों  में  जो  राजा   काने !

बच्चों  के  लब  खिलने  वाली , हँसी  हमारी पूंजी है जी ,
वही नहीं गंर देश में बोलो , रुपये - डाॅलर  के क्या माने !

फुटपाथ  पे  पलता  बचपन , देश  के भावी  कर्णधार हैं ,
उन तक तो न पहुँच सके पर,  लगे चाँद पर आने - जाने !

बाल- मजूरी वाला चिंतन  , होटल  पांच सितारा में क्यूँ ?
गद्दी  छोड़ो  ओ  राजा  जी ,  नहीं   चलेंगे  और  बहाने !

रविवार, 2 नवंबर 2014

tanu thadani तनु थदानी पता ठिकाना भूल गयें हैं

तुमको रोता देख के रोयें , ऐसा हमने प्यार बनाया !
तुम बिन जी पायेंगे कैसे , चुप्पी का जुगाड़  बनाया !

साथ चलो गंर आँख मूंद भी,नहीं गिरोगी संग मेरे तू ,
आस का घर तुमसे जब टूटा,हमने ही हर बार बनाया!

प्यार करूँगा बदले इसके ,प्यार ही माँगू शर्त नहीं ये ,
नहीं वो होगा प्रेमी जिसने ,चाहत को व्यापार बनाया !

सांसो की औकात नहीं कि,नाम वो तेरा भूल के आये ,
जिन सांसो में नाम न तेरा, उनसे न व्यवहार बनाया !

नहीं चाहिये  शहर चमकता ,नहीं चाहिये लोग पराये ,
हम-तुम जितना ही अब मैंने ,छोटा सा संसार बनाया !

पता ठिकाना भूल गये हैं ,अब तो तेरे ख्याल में रहते ,
ईंट के घर में पता नहीं है , कौन गया है कौन है आया !