शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

tanu thadani तनु थदानी किसी को दुःख न बाँटो

न पूछो क्या बताऊंगा , क्या डरते देखा मैंने !
बदन में आत्मा थी ,जिसको, मरते देखा मैंने !

यहाँ धोखे भी इक आदत की तरह, हो गयें जी ,
किसी को शर्म न आती , यूँ  करते  देखा मैंने !

वफा  के  जिक्र  पे , पूरा  शहर  ही रो रहा  है ,
वफा सीलन तरह,घर घर ही , झड़ते देखा मैंने !

नदी मिलती है समुन्दर में , कोई श्राप होगा ,
वो मेरे दिल की नदी को , यूँ करते देखा मैंने !

आँख  भर आई मेरे धैर्य की , था दर्द इतना ,
अपने घर में जब, खुद को,बिखरते देखा मैंने !

मुझे मासूमियत मुस्कान से भी , डर है लगता ,
वो मीठे पेड़ पे विष को , निखरते देखा  मैंने !

किसी को दुःख न बांटो ,है सभी के पास दुःख ही ,
सुखों की चाह में , सबको ही , लड़ते देखा मैंने !

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