शनिवार, 31 मई 2014

tanu thadani तनु थदानी क्या होता है प्यार में ऐसा


सूख के पपड़ी, बने होंठ को , आँखों  से  ही  धोया है !
जेहन में मेरे एक शहर था ,खुशी का अब वो खोया है !

कई  नुकीलीं   यादें   मेरे , सीने  से  लग  सोती   हैं ,
पत्थर सा दिन पूरे दिन भर, दिल ने अक्सर ढ़ोया है !

दिल जो खुश होता मेरा तो , शब्द  नाचते  फिरते भी ,
शब्दों  ने अक्षर अक्षर में , लेकिन  जख्म  पिरोया है !

एक  अकेलेपन  का  जंगल ,  उस  पे  तेरी  खामोशी ,
मेरे  दिल  से  पूछो जो कि , पूरी  रात  न  सोया  है !

क्या  होता  है प्यार में ऐसा , कोई  मुझे  बताये  तो ,
दुःख दूजे का मिला के खुद में ,दिल क्यूँ मेरा रोया है ?

मंगलवार, 27 मई 2014

tanu thadani तनु थदानी वरना हम सब अपराधी हैं

जब नयी सदी की नयी कथा , कहता हूँ आँखें रोती हैं !
विश्वास  नहीं  होता  है  कि , ऐसी  भी  नारी  होती है !

परदे ही  साक्षी  होते हैं , हर एक  गुनाहों के अक्सर,
घर की लक्ष्मी ,घर के भीतर,जब गैरों के संग सोती है!

इक  दर्द  गुजरता  रहता है , चुपके से  जब पूरे घर में ,
गमले- टेबल- बिस्तर तक में , खामोशी जिन्दा होती है !

हम अभिव्यक्ति में बिम्ब टांक, बातें करते हैं घुमा-फिरा,
बातों में वज़न तो आता है , पर बात बिम्ब में खोती है !

क्यूँ नहीं मानते सीधे से , हम फंसे पतन के भंवर में हैं ,
सब चमक रहें, पर नकली हैं , ये जितने हीरे -मोती हैं !

अपराधी वो जो पकड़ गया ,वरना हम सब अपराधी हैं,
हर  एक  रुह, जो  ईश्वर  है , मैली  काया को ढ़ोती है !

गुरुवार, 15 मई 2014

tanu thadani तनु थदानी . बस भारतीय ही कहना

रब चाहिये तो कहना , सब चाहिये तो कहना !
बस  एक  मुस्कुराहट का , लाईये  तो  गहना !

देना  अगर  जनम  हो , इक  सोच नयी को तो ,
पीड़ा वो प्रसव सी भी ,तुम्हें चाहिये तो सहना !

गाँधी  भी  सही  होंगे , पर  मेरी  भी  सुनो तो ,
कोई  करे  जुलुम  तो ,  चुपचाप  नहीं  रहना !

जिस काम को करो तुम  , डूबो पूरी लगन से ,
लाशों  सा  व्यर्थ  ऊपर, लहरों  पे न तू बहना !

ओशो या बुद्ध में डूबो , टोपी  लगा  या टीका ,
कोई जो पूछे तुमको , बस भारतीय ही कहना !
--------------------------  तनु थदानी

सोमवार, 5 मई 2014

tanu thadani तनु थदानी खुदा है बाप हम सबका

कोई तुमको,कोई मुझको ,इक दूजे से डराता है !
कहीं हम एक ना हो जायें , वो इससे खौफ़ खाता है !

कोई बोले जो वंदे मातरम,न बोलना, समझो ,
तुम्हारी माँ की वो इज्जत न करता , ये बताता है !

मुसलमां क्या,वो इंसा तक, भी होने के नहीं काबिल,
बता के अल्लाह की मर्जी,जो गोली को  चलाता है !

खुदा है बाप हम सबका , उसे रिश्वत न लागे है ,
मगर इंसान लड्डू चादर का  ,मस्का लगाता है !

हमारे देश के आंसू , अजायबघर में रक्खे हैं ,
मेरी आंखों में सुख का ऐसा सपना , झिलमिलाता है !