बुधवार, 22 अगस्त 2012

मेरा आमन्त्रण है तुम्हे hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3{ तनु थदानी }




हे ईश्वर !
तुम्हारे  द्वारा  दिया गया   आँखों   का  पानी ,
कभी  नहीं  बहाया  मैंने  आंसू   बना कर ,
सुरक्षित  रखा इक  शर्म   के लिए  मात्र  !

हे  ईश्वर !
मैं   सच  कहता हूँ 
हर   घर से  विसर्जित  होती  नालियों  में 
मैंने  वो  ही पानी   देखा 
अन्दर  हर  घर  के  उस  शर्म  को  बेशर्म   होते देखा !

काश !
मैं  तुम्हारे  लिए  खुद  को  सुरक्षित  रख  पाता !
जैसा    तुमने   भेजा  था  निर्मल  और  स्वच्छ ,
वैसा  तुम  तक लौट  पाता  ....................

हाँ !
मैं   केवल  तुम्हारा  आलिंगन  चाहता  हूँ ,
मगर   अभी  नहीं !
मुझे  अपने  ऊपर  लगाए   तमाम  कीचड़   साफ़  करने की   क्षमता  दो  ईश्वर ,
जिस -जिस  ने  भी मुझे  कीचड़  लगाया ,
उनके   हाथ भी  साफ़   करना ईश्वर ,
ताकि  जब भी  वो  तुमसे  क्षमा  मांगने हेतु  हाथ जोड़े ,
तो कम से कम हाथ  साफ़  व  स्वच्छ  हो  उनकें  !

मैं  नहीं  जानता  हे  ईश्वर  तुम्हारे   निराकार में   समाहित  आकार को ,
अगर जानता तो  उस  आकार  में   तुम्हारी गोद  ख़ोज  लेता ,
जहां  मैं दुबक  कर -  सिमट कर बैठता ,
और  तुम्हारे   हाथों का स्पर्श  सर   पे  महसूस  करता !!

तुम्हारे  बारे  में  लिखे  पुराण  और  कुरआन ,
दोनों  को लड़ते  रक्त- रंजित  होते  देखा ,
क्या ऐसा  संसार  मंजूर था तुम्हे ?
शायद नहीं ........
तभी तो  सर्वज्ञ  मानने  के  बावजूद  ,
ये भी   जानते हैं ,
कि  तुम हो  ही  नहीं   इस संसार  में !
अगर  होते  तो ,
श्रृन्गारित   होती   हमारी आत्माएं   प्रेम से !!

हे  ईश्वर !
मेरा आमन्त्रण  है  तुम्हे -    
आओ  अपनी  बनाई  इस  दुनिया  में !
मगर   किसी  रूप  में  न  आना ,
ना ही  शब्दों  और  किताबों  में  आना ,
आना  तो  हमारी  आँखों  में  पानी  बन  कर  आना ,
जो   संभाल रखे  तुम्हे ,  उसी का  हो  के   रह जाना  !! 

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