रविवार, 29 अप्रैल 2012

कोई मर्म तो समझे hey eshwar-3{tanu thadani} हे ईश्वर -3 {तनु थदानी }





तमाम  उम्र   मैं  रिश्तों  की  , कसौटी  पे  कसा  हूँ !
मेरी  खुशियाँ   गई  कतरा , मैं  गोया  एक  नशा हूँ !


मैं सांझा  कर  रहा जज्बात ,कोई  मर्म  तो  समझे ,
बड़ी  ही  मार्मिक पड़ताल  की ,गलियों  में  फंसा  हूँ !


मुझे  ईश्वर  ने  भेजा ,खोल  के  दिल ,ये  जहां  जिऊ ,
मगर  मैं   नागफनियों से  भरे ,इक  घर में  बसा हूँ !


तुम्हारी  चीज़  हे  ईश्वर, जो  ली  वापस  हमीं  से  तो,
सभी  रोये  दिनों  तक थें ,मगर इक मैं  ही हँसा  हूँ !


तुम्हारे  खेल  के कायदे -नियम ,सब  जान  हे ईश्वर , 
यहाँ न  जीत  है ना हार  है , फिर  भी  क्यूँ  फंसा हूँ ?

पहले माँ से प्रेम करो hey eshwar-3 हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }





इश्क  मोहब्बत  सो  ही  जाने  ,जिसने  खुदा  को  जाना !
सफल  वही  है  प्यार  को  जिसने  , एक  इबादत  माना !


प्यार  का  कोई  गणित  नहीं  है  , न  विज्ञान , न  भाषा ,
पगले   प्यार   को   ढूढ   रहे  ले  ,  रूपये -  पैसे-  आना !


पहले   माँ  से   प्रेम  करो  फिर ,  भाई - बहन   से  लाड़,
शर्तों    वाले   कोई   खिलौने  , कभी   बीच   ना   लाना !


सीधे -सीधे  लफ्जों   में , इक   बात  कहूँ , ये  सुन  लो ,
रोते - रोते   आये  तुम  , हँस  कर  के  ग़ुम  हो  जाना ! 

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

"प्रेमी हूँ ईश्वर का" hey eshwar-3 हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }



सोचो  सिकंदर  इस  जहाँ   में ,  लूट  क्या  पाया  ?
सबकी तरह जाते  समय बस, इक कफ़न  पाया  !

नौटंकियों   के   बीच   खेला ,  खेल   कृपा    का ,
अपनी जरुरत  भर  का  इक , भगवान्  बनाया !

मैंने   बड़े   करीब   से  , देखा   है    इक   पतन ,
कि भूख  में खुद  का किसी  ने ,मांस  था  खाया !

जिसने मुझे जो कुछ दिया,सब कुछ दिया लौटा,
गाली  हो या इज्ज़त मैं ,कुछ  रख  नहीं  पाया  !

मैं  क्यूँ   करूँ  श्रृंगार , जो,  प्रेमी  हूँ  ईश्वर   का , 
बस चाहिए  उसको ह्रदय , न  काया  न   माया !

माँ  शब्द  ही  मिले  नहीं , पावन  कोई    तुमसे ,
बस  इसलिए तुझ पे मैं  ग़ज़ल ,लिख नहीं पाया ! 
   

रविवार, 22 अप्रैल 2012

"माँ उसकी जी सके सुकूं से" hey eshwar-3 {tanu thadani} हे ईश्वर- 3 { तनु थदानी }





यहाँ  तो  देह-सुख  ही  जिन्दगी  का , मर्म हो गया !
जली   सब   भावनायें ,  देह - मुद्दा   गर्म   हो गया! 


नज़र  के  सामने  ही जब  हया  की,अर्थियां गुजरी,
तभी से मुहं छिपाना  खुद से ,उसका  धर्म  हो  गया !


वो इतनी जिल्लतों के बाद  भी,जिन्दा  रहा क्यूँ की ,
माँ उसकी   जी  सके  सुकूं से , सो  बे-शर्म  हो गया !


किसी  रद्दी  तरह  बढ़ता   रहा  , अम्बार  उम्र  का ,
तभी  तो  वक्त   काटना  भी , आज  कर्म  हो  गया ! 


अभी बस  कल ही तो रोते  हुए  के , आंसू  थे  पोछे ,
तभी   से  हाथ   मेरा  खुरदुरा  था ,  नर्म   हो  गया !

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

"मेरी माँ रो पड़ी" hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }





छिपाता  हूँ  मैं  जख्मो  को ,ये  आंसू  बोल  जाते   हैं  !
मेरे  अन्दर  की  पीड़ा  के ,वो  किस्से  खोल  जाते  हैं  !

जो  मैने  माँ को  बताया मैं  खुश  हूँ ,चिंता  न कर तू ,
मेरी माँ रो  पड़ी ,बोली की,  स्वर   क्यूँ  कंपकपाते  हैं ?

उन्हें तो  दुःख  से  मेरे है  नहीं  ,कुछ  लेना  या  देना ,
मगर  वो  आदतन  उन  घाव  में , ऊँगली   लगाते  हैं !

मुझे  बदनाम   करने   के   तरीके ,  दोस्तों  के   ये -
मैं  पहले  आदमी  अच्छा  था , सबको  ये  बताते  हैं !

यहीं इस उम्र  के जंगल  में ,हमने  खोया जो बचपन,
कि   पूरी   उम्र   काटी  पर , उसे  ना  खोज  पातें  हैं  ! 

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

इक बार मेरी माँ से कोई ,पूछ के देखे hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }इक बार मेरी माँ से कोई ,पूछ के देखे !



रब  ने  रचाया  खेल  ये  ,रिश्ते  हमे  दे  के !
संभालते  हैं  यूँ  की  मुर्गी ,अण्डों  को  सेके!


कैसे  उगे हैं  दिल  पे  ये ,शिकवों  के  बगीचे ,
किसने  शकों  के  बीज ,इतने  यहाँ   फेंके ?


मैं  दूर  हूँ घर  से मगर ,हर इक  से जुड़ा हूँ ,
बस आउंगा प्यारे  शहर,खुशियाँ  नई ले के !


किसने कहा कि कोई  मुझे ,प्यार  ना करता ,
इक बार  मेरी  माँ से  कोई  ,पूछ  के  देखे !

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

तुझसे ही क्यूँ प्रेम करूँ ना hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }

तू   मेरा  गर  हो  ना  सकता  , तेरा  ही  हो  जाऊं   मैं  !
हे ईश्वर क्या  करूँ जतन कि,तुझको  खुद  में पाऊं  मैं !

तुमने  भूख  को  टांग  दिया  है ,इंसानों  कि आदत  पे ,
भूख लगी  पर  जूठे  हैं  फल , कैसे   इनको  खाऊं  मैं !

रूप-रंग  की   भीड़  जमा   है ,  प्रलोभन  के   चौराहे  ,
चारो  ओर है जाता  रस्ता , किस  रस्ते   से  आऊं  मैं ?

खुद  मेरी  छाया  ने  मुझको  ,इतने  थप्पड़  मारे  की ,
तन से मन तक बना मैं पत्थर,हिल भी अब न पाऊं मैं !

मेरी आँखों ने  जो  देखा ,वफ़ा  का  कत्ले-आम  यहाँ ,
तुझसे  ही  क्यूँ  प्रेम करूँ ना ,क्यूँ दिल को भटकाऊ मैं ?  

प्यार  है  मिथ्या ,वादा  मिथ्या ,मिथ्या  सातों  फेरे  हैं ,
अगर  हूँ तेरा अंश तो क्यूँ  ना ,तुझमें  ही  रम जाऊं मैं!






बुधवार, 11 अप्रैल 2012

अब तो खुश रहो hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी }heyeshwar.blogspot.com/

 
मुद्दों की  बात  हो  तो , भावना  में  ना  बहो !
आपस की हो गर बात तो,हर बात तुम सहो !

हमने  हमारी  बात जो , कहनी  थी  सो  कही ,
अब दिल को करो साफ़,जो कहना है तुम कहो !


इक दूसरे  की गलतियों के , पीछे  दौड़ते ,
गिर जाएँ इक दूजे पे ही , ऐसा कहीं न हो !

धीमे  से  मेरे कान में  आ, गम ने ये कहा ,
मैने तुम्हे शायर बनाया ,अब तो खुश रहो !

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

कहीं भी है अगर ईश्वर hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी },




जो  हमने  गलतियाँ  खोजी  , तो  वो  गुस्से  से हैं  भरे  !
उसे   क्यूँ   हम   खिलाएं  ,  जो  हमारी    काटते    जड़ें !


बहुत   आहत  हुआ   जनतंत्र ,  मेरे  देश   में  आ  कर ,
सभाओं  में    किया  जाता  है  नंगा  , शौंक   से    बड़े  !


जिन्होंने  कल  सदन  के ,सीने  चढ़  के, जूते-बाजी  की ,
उन्हे  बे-शर्म  कह  के  हम , सदन  में  दोषी  बन  खडे !


सुना   करते  थे  कि  उस  वृक्ष   तले , गुंडे   थे   रुकते,
कटा  वो वृक्ष ,बनी  संसद ,कि  हम  तो  फिर भी हैं  डरें !


समूचे  देश  में  विज्ञापनों  में  ,  कुछ   तो  गलत   है ,
हमारे  मौन  में  ही " हाँ" है  शामिल , किससे  जा  लड़े?


कहीं  भी  है  अगर  ईश्वर  , मुझे  बस  इतना   बता  दे ,
कि  पानी आँख  में गर ,हो  ना ,शरम  का  तो  क्या  करे  ??  

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

हमें चाहिए शीतलता hey eshwar-3 (tanu thadani) हे ईश्वर -3 { तनु थदानी },


हे  ईश्वर  ये पेट दिया क्यूँ ,जो ना कभी भर पाता है ?
पूरी उम्र ही भूख  लिए , अपनी खातिर  नचवाता है !


रस से भरे जहां  में रस  से , रह जाता  है  वंचित वो ,
मन ओं पेट के चक्रव्यूह में ,फंस कर जो रह जाता है !


चुप्पी  वाले  एक खजाने , उपर  बैठा  मार कुंडली ,
नाग के जैसा मन ये मेरा ,मुझको  ही डंस जाता है !


छल के मेले घूम खरीदें ,मन ने मेरे दुःख के सामां,
शातिर मन भी जब है थकता ,माँ की गोद में आता है !


द्वारे - द्वारे  द्वेष दिखा ओं , रस्ते - रस्ते  रोष  यहाँ ,
पता नहीं ये जीवन- रस्ता , कब कैसे कट जाता है !


हमें चाहिए शीतलता ,जो, मन की अगन पे लेप करे ,
ठन्डे रिश्तों बीच मुसाफिर,झुलस-झुलस जल जाता है !