सोमवार, 18 मार्च 2024

मैं भी चुप था, चुप थी वो भी, बस तन्हाई बोल रही थी ! 
थोड़ी शर्म , झिझक थोड़ी सी, बंधन सारे खोल रही थी !

जीवन भर का लेखा जोखा,एक स्वांग सा उम्र का धोखा,
पर मेरी धड़कन में बस वो ,मुझमें खुशियाँ घोल रही थी! 






गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

एक हो अहसास

आते ही तेरे खुश्बू से,भर गया है मन  ! 
धूप ले के सिलवटें, आ गयी आंगन  ! 

तुम तो मेरे पास हो, आवाज की तरह, 
मैं भी  संग हूँ  तुम्हारे, बन तेरा यौवन ! 

इस जमाने की अदाओं, ने मुझे लूटा, 
बस रुहानी प्यार से ही, भर मेरा दामन! 

एक तू और एक मैं, बस हो यही दुनिया, 
एक हो अहसास, न हो, दरमियाँ ये तन! 

----------------------------  तनु थदानी




गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

ये कैसा हिंद है

इक सिंध था जो सिंधियों का, इक जहान था  ! 
उस सिंध में दादा जी का भी, इक मकान था  ! 

हमारी जमीन, संस्कृति, मुफत में बांट दी  , 
नेहरू ने सिंधु धार की, परवान काट दी  ! 

अब छुट्टी में, बच्चे कहो, किस गाँव जायेंगे  ? 
अब मिल के कब बैठेंगे, कब खुशियाँ मनायेंगे  ?? 

बच्चों को अब हम सिंधियत पर, क्या बतायेंगे  ? 
गांधी ने दर - बदर किया, क्या ये सुनायेगे  ?? 

पंजाब ओं बंगाल भी, यहाँ वहाँ  गया, 
जो सिंध झूलेलाल का था, वो कहाँ गया  ? 

हम शेर , मगर, राजनीति की भेंट चढ़ गये  , 
सब लाडे लोरियां, वतन के नाम कर गये ं ! 

ख्वाहिश हेमू कलाणी की, बेकार हो गई, 
दाहर सेन वाले सिंध की, जमीन खो गई  ! 

जब बंट रहे थे सब, मिटाये जा रहे थे हम, 
बस राष्ट्र गान में बचे, इस बात का है ग़म  ! 

सर्वप्रथम सभ्यता की, इक गवाह है सिंधु  , 
भारत के सीने रिस रही, इक आह है सिंधु  ! 

सिंधु के बिना गंगा जो, परिपूर्ण नहीं है  , 
तो सिंध के बिना ,ये हिंद पूर्ण नहीं है  ! 

बच्चा जो गुम है भीड़ में, वो मेरा सिंध है, 
न सिंधु, सिंध की जमीं, ये कैसा  हिंद है  ?? 
------------------------  तनु थदानी


रविवार, 4 फ़रवरी 2024

गरज है खुद की, वरना,प्रार्थनायें, कौन करता है

गरज है खुद की, वरना,प्रार्थनायें, कौन करता है  ? 
भला दूजे के दुख में,अपनी आंखें, कौन भरता है  ? 

किसी ने एक बीघे के लिए, भाई गंवा दिया  , 
ऐसी क्या है मजबूरी, जो ये सब , करना पड़ता है! 

तेरे पद तक, तेरे आगे ओं पीछे, अर्दली होंगे  , 
तेरे पद छोड़ते ही, देखना कि, कौन रहता है  ! 

खलल खामोशियों में क्यूं न हो, जब ख्वाहिशें खनके, 
 हो ग़र ख्वाहिशें ज्यादा, तो मानव, रोज मरता है  ! 

हमारे सब मुखौटे पारदर्शी, हो गयें हैं अब  , 
बाहर हो या हो घर, अब संभल के, रहना पड़ता है! 
------------------------------  तनु थदानी


हमेशा साथ होते हैं, मगर अक्सर नहीं मिलते !

हमेशा साथ होते हैं, मगर अक्सर नहीं मिलते  ! 
लपक के हाथ मिलाते, मगर खुल कर नहीं मिलते! 

वो मजदूर जो कि दूसरों के, घर बनाते हैं, 
उन्ही के घर पे सलामत, कभी छप्पर नहीं मिलते! 

बड़ी खाई है सन्नाटे की, गिरता जा रहा हूँ मैं, 
हमारे शहर में परिवार वाले, घर नहीं मिलते  ! 

तुम्हीं से चोट हूँ खाता, बिखर के टूट हूँ  जाता, 
तुम्हारे हाथ में लेकिन कभी, पत्थर नहीं मिलते  ! 

किसी की मुस्कुराहट में, कोई छल हो भी सकता है, 
मैं इसको जान न पाता कभी, तुम ग़र नहीं मिलते  ! 
-------------------------------  तनु थदानी

कीचड़ से नाराज न हो

आते धोखे उभर के जब जब, अपनेपन को छिलते हैं! 
दिल न मिलता,रस्म की खातिर,हाथ ही केवल मिलते हैं!

अनाथ आश्रम भरे पड़े हैं, दीन गरीब के बच्चों से, 
बड़े घरों के मम्मी पापा, वृद्ध आश्रम में मिलते हैं  ! 

छोटी हो या बड़ी इमारत, यही कहानी सबकी है, 
निश्चित तौर पे इक न इक दिन,सबसे पाये हिलते हैं  ! 

अनपढ़ श्रम बेच के खाता, पढ़े लिखों की शर्म बिकी, 
अब भी नहीं है बिगड़ा कुछ चल, आदर्शों को सिलते हैं! 

खाली जेब ही होती भारी, दुनियाँ में समझाया है, 
कीचड़ से नाराज न हो, कीचड़ में कमल भी खिलते हैं! 
---------------------------------  तनु थदानी


शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

बड़ा जालिम जमाना है

किसी की मौत पे बंदा बड़ा,मासूम होता है ! 
सब रो भी रहे ; हैं कि नहीं, फिर वो रोता है! 

कोई हमदर्द बन के छल गया, किस्सा पुराना है, 
वो छलिया आजकल हमदर्द बन के, साथ सोता है! 

जो मुझको छोड़ के जाना है तो जाओ, मगर सुन लो, 
किसी के भी बिछड़ने से यहाँ, कोई न रोता है  ! 

किसी ने शक्ल देखी, कह दिया कि खूबसूरत हो, 
भला चरित्र जैसी शै को, आखिर कौन ढ़ोता है  ! 

उसी ने पीठ थपथपाई, फिर आंतें निकाल ली ं‌, 
बड़ा जालिम जमाना है, यहाँ ऐसा ही होता है  ! 
-------------------------------   तनु थदानी